Us Tariff Revenue: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हिंदुस्तान पर टैरिफ का दबाव और बढ़ा दिया है। बुधवार को ट्रंप प्रशासन ने हिंदुस्तान से आने वाले वस्तुओं पर अतिरिक्त 25% शुल्क लगाने की घोषणा की, जिससे कुल टैरिफ अब 50% हो गया है। यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि हिंदुस्तान ने रूस से ऑयल आयात करना जारी रखा है। अमेरिका के इस कदम का हिंदुस्तान ने कड़ा विरोध किया है और इसे “अनुचित, अन्यायपूर्ण और अकारण” कहा है। टैरिफ में इस बढ़ोतरी का सीधा असर हिंदुस्तान के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों जैसे वस्त्र, समुद्री उत्पाद और चमड़ा उद्योग पर पड़ सकता है। इससे लाखों नौकरियों और भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है।
Us Tariff Revenue in Hindi: करीब 30 अरब $ की आमदनी हुई
इस बीच, अमेरिकी ट्रेजरी डिपार्टमेंट ने जानकारी दी है कि जुलाई महीने में अमेरिका को टैरिफ से करीब 30 अरब $ की आमदनी हुई, जो पिछले वर्ष की तुलना में 242% अधिक है। अप्रैल से अब तक अमेरिकी गवर्नमेंट को टैरिफ से कुल 100 अरब $ की कमाई हुई है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में तीन गुना अधिक है।
CNN की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप ने इन टैरिफ राजस्व को लेकर दो संभावित योजनाएं बताई हैं, एक, इससे अमेरिका का बहु-ट्रिलियन $ का ऋण कम किया जाए, और दूसरा, अमेरिकी नागरिकों को “टैरिफ रिबेट चेक” के रूप में सीधे भुगतान दिया जाए। हालांकि, अभी तक इनमें से कोई भी योजना लागू नहीं हुई है।
टैरिफ से मिली आमदनी अभी कम है
अमेरिकी ट्रेजरी विभाग द्वारा एकत्रित यह राजस्व “जनरल फंड” में जाता है, जिसे गवर्नमेंट की आर्थिक जिम्मेदारियों के लिए खर्च किया जाता है जैसे सामाजिक सुरक्षा भुगतान आदि। लेकिन जब गवर्नमेंट की कमाई उसके खर्च से कम होती है, तो उसे ऋण लेना पड़ता है। वर्तमान में अमेरिका का राष्ट्रीय ऋण 36 ट्रिलियन $ से अधिक हो गया है, जिससे आर्थिक विकास को लेकर चिंता गहराई है।
विशेषज्ञों का बोलना है कि हालांकि टैरिफ से मिली आमदनी 1.4 ट्रिलियन $ के बजट घाटे को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन इसने कुछ हद तक उस अंतर को कम किया है। यदि कांग्रेस पार्टी ट्रंप की योजना को स्वीकृति देती है और लोगों को “रिबेट चेक” दिए जाते हैं, तो यह बजट में एक और बड़ा घाटा पैदा कर सकता है, ऐसा येल यूनिवर्सिटी के बजट लैब के अर्थशास्त्री एर्नी टेडेस्की का मानना है।
इस टैरिफ नीति को लेकर अमेरिका में भी तीखी बहस छिड़ गई है एक ओर इसे चीन, हिंदुस्तान जैसे राष्ट्रों पर दबाव बनाने का तरीका बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर घरेलू व्यवसायों पर पड़ रहे बोझ और संभावित आर्थिक असंतुलन की भी चर्चा तेज हो गई है।