भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ शुक्रवार को यहां दो घंटे से अधिक समय तक चली ‘पहांडी’ रस्म के बाद रथयात्रा के लिए अपने-अपने रथों पर विराजमान हुए. ‘पहांडी’ शब्द संस्कृत शब्द ‘पदमुंडनम’ से आया है जिसका अर्थ है पैर फैलाकर धीमी गति से कदम उठाना. इस रस्म के अनुसार तीनों देवी-देवताओं की लकड़ी की प्रतिमाओं को 12वीं सदी के मंदिर से रथों तक लेकर जाया जाता है. तीनों देवी-देवताओं का पहांडी चक्रराज सुदर्शन के साथ प्रारम्भ हुआ, जिनके पीछे भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और अंत में भगवान जगन्नाथ थे.‘
‘पहांडी’ अनुष्ठान पहले सुबह साढ़े नौ बजे प्रारम्भ होना था लेकिन यह एक घंटे की देरी से प्रारम्भ हुआ और यह रस्म योजना के मुताबिक संपन्न हुई. तीनों देवी-देवताओं को मंदिर के सिंह द्वार के सामने खड़े उनके रथों पर विराजमान किया गया जहां से उन्हें करीब 2.6 किलोमीटर दूर श्री गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है. घंटे, शंख और झांझ बजाते हुए चक्रराज सुदर्शन को सबसे पहले मुख्य मंदिर से बाहर लाया गया और देवी सुभद्रा के ‘दर्पदलन’ रथ पर विराजमान किया गया. पंडित सूर्यनारायण रथशर्मा ने कहा कि श्री सुदर्शन भगवान विष्णु का चक्र है, जिनकी पूजा पुरी में भगवान जगन्नाथ के रूप में की जाती है.
श्री सुदर्शन के पीछे भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई भगवान बलभद्र थे. भगवान बलभद्र को उनके ‘तालध्वज’ रथ पर विराजमान किया गया है. भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र की बहन देवी सुभद्रा को सेवकों द्वारा ‘शून्य पहांडी’ (रथ पर ले जाते समय देवी आकाश की ओर देखती हैं) नामक विशेष शोभायात्रा के माध्यम से उनके ‘दर्पदलन’ रथ पर ले जाया गया. जब भगवान जगन्नाथ मंदिर से बाहर आए, तो ग्रैंड रोड पर भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा और भक्तों ने हाथ उठाकर ‘जय जगन्नाथ’ का नारा लगाया. ओडिसी नर्तकों, लोक कलाकारों, संगीतकारों और राज्य के विभिन्न हिस्सों से आए कई अन्य समूहों ने ‘कालिया ठाकुर’ (श्याम वर्णी भगवान जगन्नाथ) के सामने प्रस्तुति दी.
ओडिसी नर्तकी मैत्री माहेश्वरी ने कहा, ‘‘यदि प्रभु मुझ पर एक दृष्टि डाल दें तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा.” गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती अपने कुछ शिष्यों के साथ तीन रथों पर देवताओं के विराजमान होने के बाद उनके दर्शन करने पहुंचे. 81 वर्षीय शंकराचार्य व्हीलचेयर पर सवार होकर रथों के पास पहुंचे. शंकराचार्य का यह दर्शन भी रथ यात्रा अनुष्ठानों का हिस्सा है. ओडिशा के गवर्नर हरि बाबू कंभमपति, सीएम मोहन चरण माझी, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, गजेंद्र सिंह शेखावत, पुरी के सांसद संबित पात्रा, ओडिशा गवर्नमेंट के कुछ मंत्री और कई अन्य लोग पुरी में पहांडी रस्म के साक्षी बने.
रथ यात्रा प्रत्येक साल उड़िया माह के दूसरे दिन आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आयोजित की जाती है. यह एकमात्र अवसर है जब भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन रत्न जड़ित ‘रत्न सिंहासन’ से उतरकर ‘पहांडी’ अनुष्ठान के अनुसार सिंह द्वार से होकर 22 सीढ़ियां (जिन्हें बाईसी पहाचा के नाम से जाना जाता है) उतरकर मंदिर से बाहर आते हैं. निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, पहांडी के बाद अपराह्न साढ़े तीन बजे राजा गजपति दिव्यसिंह देब द्वारा ‘छेरापहंरा’ (रथों की सफाई) रस्म को संपन्न किया जाएगा, जिसके बाद अपराह्न 4 बजे रथों को खींचा जाएगा.
इस बीच, भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथयात्रा के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु शुक्रवार को पुरी पहुंचे. रथयात्रा के लिए शहर में करीब 10,000 सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गयी है. ओडिशा के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) वाई बी खुरानिया ने कहा, ‘‘हमने रथयात्रा के सुचारू संचालन के लिए हरसंभव व्यवस्था किए हैं.” उन्होंने पत्रकारों को कहा कि 275 से अधिक कृत्रिम मेधा (एआई) से लैस सीसीटीवी कैमरे भीड़ पर नजर रख रहे हैं.
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) संजय कुमार ने कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद मिली कुछ सूचनाओं को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा बढ़ायी गई है. ओडिशा पुलिस के अलावा, त्वरित कार्रवाई बल (आरएएफ) की तीन टीम सहित केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की आठ टुकड़ियां तैनात की गई हैं. उन्होंने कहा, ‘‘ओडिशा पुलिस के साथ कई केंद्रीय सरकारी एजेंसियां सहयोग कर रही हैं, जिनमें एनएसजी स्नाइपर्स, तट रक्षक ड्रोन और ड्रोन रोधी प्रणालियां शामिल हैं. श्वान दल और ओडिशा की दंगा रोधी इकाइयां भी यहां तैनात हैं.”