सुप्रीम न्यायालय ने दीपावली के अवसर पर दिल्ली-एनसीआर में हरित पटाखे फोड़ने की अनुमति दे दी है, लेकिन एक सीमित समय सीमा के भीतर. शीर्ष न्यायालय के आदेश के अनुसार, पटाखे सिर्फ़ सुबह 6 बजे से 8 बजे के बीच और फिर रात 8 बजे से 10 बजे तक ही फोड़ने की अनुमति होगी. भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की एक पीठ ने बोला कि हरित पटाखों की बिक्री और फोड़ने की अनुमति सिर्फ़ निर्दिष्ट स्थानों पर ही होगी. साथ ही, आदेश का उल्लंघन करने वालों को नोटिस जारी किया जाएगा.
इस साल जुलाई में, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सभी प्रकार के पटाखों के निर्माण, भंडारण, बिक्री और फोड़ने पर वर्ष भर के लिए प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी. इसका उद्देश्य शहर में, खासकर दीपावली के बाद, लगातार बढ़ रही वायु प्रदूषण की परेशानी से निपटना था.
डीपीसीसी की घोषणा से ठीक चार महीने पहले, उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में हरित पटाखों सहित पटाखों पर एक वर्ष के लिए पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था.
पिछले हफ़्ते, उच्चतम न्यायालय ने सितंबर में प्रमाणित निर्माताओं को दिल्ली-एनसीआर में हरित पटाखों के उत्पादन की अनुमति देने के बाद, हरित पटाखों की बिक्री पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया. निर्माताओं ने इस कदम का स्वागत किया और प्रतिबंध के बावजूद पिछली दीपावली पर पारंपरिक पटाखों के व्यापक इस्तेमाल का हवाला दिया.
उनका तर्क है कि हरित पटाखों की अनुमति देने से व्यापार औपचारिक हो सकता है और गैरकानूनी निर्माण में कमी आ सकती है. व्यापारियों ने इस कदम का समर्थन किया. दिल्ली पटाखा व्यापारी संघ के सदस्य राजीव कुमार जैन ने बोला कि इस कदम से कालाबाज़ारी पर रोक लग सकता है और सुरक्षित विकल्पों को बढ़ावा मिल सकता है
उन्होंने कहा, “मुख्य न्यायाधीश ने यह क्यों बोला कि यदि पटाखों की अनुमति नहीं दी गई, तो एक माफिया पैदा हो जाएगा. गैरकानूनी काम में लगे लोगों को कानून का सामना करना होगा, लेकिन हरित पटाखों की अनुमति देने से लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित विकल्प मिलेंगे.” जैन ने बोला कि नवाचारों ने ग्रीन पटाखों की नयी रेंज में सुधार किया है, जो 80-90% पारंपरिक प्रभाव—स्काई शॉट्स, चक्री और शावर—प्रदान करते हैं, लेकिन संशोधित रचनाओं के साथ जो उत्सर्जन को जल वाष्प में परिवर्तित करते हैं. उन्होंने कहा, “केवल दीपावली के दौरान ही नहीं, पूरे हिंदुस्तान में इसकी भारी मांग है.
जनवरी से दिसंबर तक कम से कम 20 त्यौहार हैं जिनमें आतिशबाजी का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन सिर्फ़ दीपावली को ही इस तरह की जांच का सामना करना पड़ता है, जो अनुचित लगता है.” पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं हालांकि, पर्यावरणविद और स्वास्थ्य जानकार संशय में हैं. कार्यकर्ता भवरीन कंधारी ने तर्क दिया कि ग्रीन पटाखे भी सुरक्षित नहीं हैं. “सीएसआईआर-नीरी के आंकड़े प्रयोगशाला स्थितियों में उत्सर्जन में सिर्फ़ 30% की गिरावट दिखाते हैं.
दिल्ली की सर्दियों में, जब प्रदूषण ठंडी हवा में फंस जाता है, तो यह कमी अर्थहीन हो जाती है दो छोटे बच्चों की माँ नेहा जी जैन ने न्यायालय से जन स्वास्थ्य को अहमियत देने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, “बच्चे पहले से ही जहरीली हवा से जूझ रहे हैं, अस्थमा और फेफड़ों की रोग से जूझ रहे हैं. प्रदूषित हवा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पटाखे पर ‘ग्रीन’ का लेबल लगा है या नहीं—यह उन्हें एक जैसा हानि पहुँचाती है. दिवाली बिना पटाखों के भी उतनी ही खूबसूरत हो सकती है.“
जानकारों ने चेतावनी दी है कि इस दीपावली पिछले वर्ष से भी बदतर प्रदूषण देखने को मिल सकता है, क्योंकि मानसून की वापसी के साथ ही हवा की गुणवत्ता में गिरावट प्रारम्भ हो गई है. थिंक टैंक एनवायरोकैटलिस्ट्स के संस्थापक सुनील दहिया ने कहा, “परिवहन, बिजली और निर्माण से उत्सर्जन पहले से ही अधिक है, पटाखों पर कोई भी ढील-भले ही ग्रीन पटाखे—दिल्ली को गंभीर प्रदूषण की श्रेणी में और गहराई तक धकेल देगी.”
सीएसआईआर-नीरी के अनुसार, ग्रीन पटाखे खोल के आकार को छोटा करते हैं, राख को समाप्त करते हैं और धूल को दबाने के लिए एडिटिव्स का इस्तेमाल करते हैं. प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए उन्हें हरे रंग के सीएसआईआर-नीरी लोगो और एन्क्रिप्टेड क्यूआर कोड से पहचाना जा सकता है. हालांकि, 2022 में दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के एक शोध में पाया गया कि हरित पटाखे भी अति सूक्ष्म कणों की उच्च सांद्रता छोड़ते हैं जो फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश करने में सक्षम होते हैं.